31, March 2025

वेदों में वर्णित प्रमुख स्त्री पात्रों का चारित्रिक विश्लेषण

Author(s): डॉ. पूजा

Authors Affiliations:

संस्कृत विभाग, दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्युट्, दयालबाग, आगरा

DOIs:10.2018/SS/202503015     |     Paper ID: SS202503015


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सारांश :

वेद प्राणिहितो धर्मी ह्यधर्मस्तद्विपयर्यः।

वेदो नारायणः साक्षात् स्वयंभूरिति शुश्रुम।।[1]

अर्थात् वेदों ने जिन कर्मों का विधान किया है, वे धर्म हैं और जिनका निषेध किया है, वे अधर्म हैं। वेद स्वयं भगवान् के स्वरूप हैं। वेद विश्व का प्राचीनतम वाङ्य है। भारत की सनातन मान्यताओं के अनुसार वेद अपौरुषेय हैं। शास्र्सों में वेद का धर्म के मूलरूप में आख्यान किया गया है "वेदोऽखिलो धर्ममूलं"।"[1] वेद मानवमात्र को मनुष्य बनने के लिये आज्ञा देते हैं।

वेद हमें संवेदना से परिपूर्ण हृदय से युक्त होने और मननशील मनुष्य बनने की ओर उत्प्रेरित करते हैं। वाचस्पति गैरोला[1] ने अपने ग्रन्थ में लिखा है कि "हमारी सारी क्रियाओं का मूल वेद ही है। हिन्दू धर्म में वेदों को ईश्वरीय आदेशों के रूप में शिरोधार्य माना गया है। वेद हिन्दू जाति के प्राणसर्वस्व है। वेदों का प्रधान विषय यद्यपि ज्ञान, कर्म और उपासना की विवेचन करना है किन्तु हिन्दू जाति का विश्वकोश होने के नाते उनमें हिन्दू जाति के धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक उन्नति का विस्तृत विवेचन और साथ ही मानवजाति के विकास की क्रमबद्ध कथा भी वर्णित है।" इसीलिये 'सर्वज्ञानमयो हि सः'[1] कहकर मनु ने वेदों को सभी विद्याओं का स्रोत माना है।' वह कहते है कि वेदशास्त्र के वास्तविक अर्थ को जानने वाला जिस किसी आश्रम में रहता हुआ इसी लोक में ब्रह्मभाव के लिये समर्थ होता है। शतपथ ब्राह्मण में भी वेदों के अध्ययन की महत्ता का वर्णन किया गया है। अतः आर्यसभ्यता और साहित्य पर वेदों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। वेदों में वर्णाश्रमधर्म, गार्हस्थ्य-सूत्र, जीवन-शुचिता, विवाह-संस्कार, आत्मगुणों का महत्त्व, आत्मोन्नति के उपाय, जीवन-मुक्ति के उपाय, पापकर्मों-पुण्यकर्मों का जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों, पारिवारिक सदस्यों के अन्तर्सम्बन्धों, तपोबल का सामर्थ्य, आचार शिक्षा तथा पारिवारिक और सामाजिक जीवन में स्त्रियों की भूमिका इत्यादि पर प्रकाश डाला गया है।

डॉ. पूजा(2025); वेदों में वर्णित प्रमुख स्त्री पात्रों का चारित्रिक विश्लेषण, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences,      ISSN(o): 2581-6241,  Volume – 8,   Issue –  3.,  Pp.78-87.        Available on –   https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/

[1] मनुस्मृति

[1] ऋग्वेद संहिता,प्रथम मंडल,पृ.272

[1] ऋग्वेद संहिता,1/179/1

[1] ऋग्वेद संहिता,1/179/2

[1] ऋग्वेद संहिता,1/179/4

[1] बृह्देवता,4/60

[1] ऋग्वेद संहिता.पृ.सं.194

[1] ऋग्वेद संहिता,1/126/6

[1] ऐतरेय आरण्यक,पृ.सं.81-82

[1] ऋग्वेद संहिता,5/61/5

[1] ऋग्वेद संहिता,5/61/7-8

[1] संस्कृत निबन्ध मन्दाकिनी,पृ.सं.-67

[1] मनुस्मृति,11/87

[1] ऋग्वेद संहिता,5/28/3

[1] तैत्तरेय ब्राह्मण,3/7/7/11

[1] ऋग्वेद संहिता8/91/5

[1] ऋग्वेद संहिता,8/91/7

[1] बृह्देवता,6/105-106

[1] ऋग्वेद संहिता,10/10/1

[1] ऋग्वेद संहिता,10/10/3,5,11

[1] ऋग्वेद संहिता, 10/10/12

[1] मनुस्मृति,2/214

[1] बृह्देवता,7/42-45

[1] ऋग्वेद संहिता,10/39/6

[1] ऋग्वेद संहिता,10/40/11-13

[1] वैदिक साहित्य एवं संस्कृति,पृ.सं.-260

[1] ऋग्वेद संहिता,1/112/10

[1] ऋग्वेद संहिता,10/102/2

[1] वाल्मिकी रामायण,2/9/162

[1] ऋग्वेद संहिता,10/134/6

[1] त्तैत्तिरीय संहिता,5/5/15

[1] वायुपुराणम्,69/51-52

[1] ऋग्वेद संहिता,10/95/11

[1] श्री विष्णुपुराण,6/40-47

[1] ऋग्वेद संहिता,10/95/13,15,18

 


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