भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में भारत की लोकसंस्कृति में अन्तर्निहित जीवनदृष्टि
Author(s): 1. विमल कुमार 2. डॉ कीर्ति प्रजापति
Authors Affiliations:
*विमल कुमार
सहायक आचार्य, बी.एड. / एम.एड. विभाग
महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली
Email- vkedu18@gmail.com
**डॉ. कीर्ति प्रजापति
सहायक आचार्य, बी.एड. / एम.एड. विभाग
महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली
Email- keertiprajapati@gmail.com
DOIs:10.2018/SS/202503008     |     Paper ID: SS202503008विश्व की तमाम सभ्यताओं के जीवन एवं सृष्टि के बारे में अपने विचार हैं, किसी भी विचार को छोटा-बड़ा न बताते हुए यह शोध पत्र भारत के विचार को समझने का प्रयत्न है| प्रस्तुत शोधपत्र के विषय ‘भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में भारत की लोकसंस्कृति में अंतर्निहित जीवनदृष्टि’ में भारत की ज्ञान परंपरा के अंतर्गत आने वाले विचारों का अध्ययन किया गया है |
वर्तमान वैश्विक परिवेश में अनेकों प्रकार की मानवीय, पर्यावरणीय एवं मूल्यपरक समस्याएं व्याप्त हैं | भारत की ज्ञान परंपरा का चिन्तन उन सभी मुद्दों पर क्या राय रखता है? भारत की ज्ञान परंपरा के विचार वर्तमान समय में कितने सम्यक एवं समीचीन हैं? जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भारत की ज्ञान परंपरा के कौन -कौन से पक्ष भारत के आमजन-मानस के लोकव्यवहार में दृष्टिगोचर होते हैं ? भारत की लोकसंस्कृति में अन्तर्निहित पारिवारिक जीवन मूल्य, विश्वबंधुत्व मूल्य, एवं पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण कौन से है ? इन सभी प्रश्नों के सम्यक उत्तर प्राप्त करने की अपेक्षा में यह शोध कार्य किया गया है |
शोधकार्य गुणात्मक प्रकार का है तथा इसके लिए प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक स्रोतों का सहयोग लिया गया है | भारतीय ज्ञान परंपरा के ग्रन्थ, ग्रंथों पर आधारित रचनाएँ तथा विषय से सम्बंधित अन्य प्रकाशित शोधोपत्रों आदि के माध्यम से इस शोध कार्य को आगे बढाया गया है| वर्तमान के मुद्दों एवं विचारों में सकारात्मक परिमार्जन करते हुए मानव कल्याण के लिए आवश्यक विचारों को परिलक्षित करने में ये शोध महतवपूर्ण सिद्ध होगा | शोधकार्य के निष्कर्ष हमें भारत की ज्ञान परंपरा के विविध पहलुओं को समझने में सहायक होंगे तथा समाज जीवन के भारतीय आदर्शों को प्रतिबिंबित करेंगे |
विमल कुमार, डॉ कीर्ति प्रजापति(2025); भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में भारत की लोकसंस्कृति में अंतर्निहित जीवनदृष्टि, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 3., Pp.40-45. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
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