हिंदी नाटकों में वैदिक पात्रों की प्रासंगिकता
Author(s): डॉ.कुसुम लता
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सहायक प्रवक्ता, हिंदी विभाग, दौलत राम कॉलेज
DOIs:10.2018/SS/202503013     |     Paper ID: SS202503013वैदिक कालीन ज्ञान परम्परा हमारी अमूल्य निधि है।नाटक दृश्य-श्रव्य विधा है।नाटककार पात्रों के जरिये अपनी बात को पाठक या दर्शक-समूह तक पहुंचाता है। हिंदी साहित्य में वैदिक पात्रों को लेकर बहुत कुछ लिखा जा चुका है।साहित्य की विभिन्न विधाओं में वैदिक पात्रों के माध्यम से समय और समाज की परिवर्तित होती स्थितियों और परिस्थितियों को समय-समय पर उजागर किया जाता रहा हैं।अपने समय की नब्ज़ पहचानकर नाटककार ऐसे वैदिक पात्रों को लेकर नवीन प्रयोग करते रहे है।वैदिक पात्र जीवन के कई क्षेत्रों में व्याप्त विविधताओं को उजागर करने में सक्षम होते है।इतना ही नहीं ये वैदिक पात्र अनेक परिस्थितियों और क्षेत्रों में नये सन्दर्भों में प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं। वैदिक पात्रों को आधार बनाकर वर्तमान जीवन की वैषम्यपूर्ण समस्याओं को उठाने वाले ये नाटक वर्तमान युग के वाहक हैं और भविष्य में भी रहेंगे।वैदिक ज्ञान परम्परा प्रत्येक युग में प्रासंगिक है।वैदिक कालीन पात्र जीवन के विविध क्षेत्रों में मार्ग प्रशस्त करते हैं।
डॉ.कुसुम लता(2025); हिंदी नाटकों में वैदिक पात्रों की प्रासंगिकता, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 3., Pp.66-71. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
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