दास्य-भाव की भक्ति: सूरदास-साहित्य में सेवक-भावनाओं का विश्लेषण
Author(s): Dinesh Kirad
Authors Affiliations:
महाराजा अग्रसेन स्नातकोत्तर महाविद्यालय नगर, जिला डीग, राजस्थान, भारत
DOIs:10.2018/SS/202510013     |     Paper ID: SS202510013भक्ति-साहित्य में भक्त और देवता के बीच के रिश्ते कई अलग-अलग रूपों में सामने आते हैं: शान्त, सखा, वात्सल्य, माधुर्य, दास्य आदि। ‘दास्य-भाव’ का मतलब है भक्त का खुद को सेवा-भूत सेवक के रूप में प्रस्तुत करना, जो देवता के प्रति समर्पण, जिम्मेदारी और नि:स्वार्थता का एक अनूठा मिश्रण है (जैसे, खुद को “भगवान का दास” कहने की प्रवृत्ति)। हिंदी-भक्ति-काल के कवियों में सूरदास का स्थान बेहद खास है। उन्होंने ब्रजभाषा में कृष्णभक्ति के भाव को आम लोगों तक पहुँचाया। हालांकि, सूरदास के साहित्य में दास्य-भाव का गहराई से विश्लेषण अपेक्षाकृत कम हुआ है। इस शोध का उद्देश्य है — सूरदास के साहित्य में दास्य-भाव की संरचना, स्वरूप और सांस्कृतिक अर्थ को उजागर करना।
Dinesh Kirad (2025); दास्य-भाव की भक्ति: सूरदास-साहित्य में सेवक-भावनाओं का विश्लेषण, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 10, Pp.76-83. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
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