राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष में भारतीय ज्ञान परंपरा का वैश्विक परिप्रेक्ष्य
Author(s): राजेश कुमार, डॉ० मंजू रानी
Authors Affiliations:
राजेश कुमार
शोधार्थी, शिक्षाशास्त्र विभाग, शहीद मंगल पाण्डेय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, माधवपुरम, मेरठ, उत्तर प्रदेश।
और
डॉ० मंजू रानी
शोध निर्देशिका, शिक्षाशास्त्र विभाग, शहीद मंगल पाण्डेय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, माधवपुरम, मेरठ, उत्तर प्रदेश।
DOIs:10.2018/SS/202510008     |     Paper ID: SS202510008सारांशः
भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध परंपराओं में से एक है. जिसने हजारों वर्षों तक मानवता को जीवन के विभिन्न आयामों में मार्गदर्शन दिया है। यह परंपरा केवल आध्यात्मिकता और दर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, कला, संगीत, राजनीति और शिक्षा तक का गहन ज्ञान समाहित है। वैश्वीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति के इस दौर में जब विश्व अनेक संकटों, जलवायु परिवर्तन, मानसिक तनाव, असमानता और सांस्कृतिक विघटन से जूझ रहा है, तब भारतीय ज्ञान परंपरा एक समग्र और संतुलित जीवन दृष्टि प्रस्तुत करती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसकी स्थापना 1925 में हुई थी, अपने शताब्दी वर्ष (सितम्बर, 2025) में इस परंपरा को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने के लिए कार्य कर रहा है। योग, आयुर्वेद, वेदांत, अहिंसा और भारतीय शिक्षा प्रणाली जैसे तत्व आज विश्व में स्वीकार्य और प्रासंगिक होते जा रहे हैं। संघ की शाखाएँ, सेवा-प्रकल्प और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सांस्कृतिक गतिविधियाँ इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
यह शोधपत्र गुणात्मक पद्धति पर आधारित है, जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न आयामों तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों का विश्लेषण किया गया है। इसमें विशेष रूप से योग दिवस, आयुर्वेदिक चिकित्सा का वैश्विक प्रसार, भारतीय दर्शन की शिक्षा में भूमिका और संघ की वैश्विक गतिविधियों को उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया गया है। निष्कर्ष रूप में यह स्पष्ट होता है कि भारतीय ज्ञान परंपरा न केवल भारत की धरोहर है बल्कि वैश्विक समाज के लिए जीवनदायी मार्गदर्शन भी है।
राजेश कुमार, डॉ० मंजू रानी (2025); राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष में भारतीय ज्ञान परंपरा का वैश्विक परिप्रेक्ष्य, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 10, Pp. 52-57. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
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