विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता और पूरकता की शिक्षा का प्रभाव – स्वयं में व्यवस्था से समग्र व्यवस्था में भागीदारी के सन्दर्भ में
Author(s): डॉ अभय वानखेड़े
Authors Affiliations:
(परियोजना निदेशक, अनुसन्धान)
आनंद शोध परियोजना, राज्य आनंद संस्थान, भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत
+91-9425637728
DOIs:10.2018/SS/202507004     |     Paper ID: SS202507004आत्मनिर्भरता और पूरकता की शिक्षा का आधार मध्यस्थ दर्शन सहस्तित्ववाद है, जिसमे मानव लक्ष्य को स्वयं में समाधान, परिवार में समृद्धि, समाज में अभयता, प्रकृति में सहस्तित्व के रूप में पहचाना गया है। विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता क्षमता के रूप में एवं पूरकता योग्यता के रूप में दृष्टिगत होती है। प्रस्तुत शोध में आत्मनिर्भरता को मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक स्वतंत्रता के तीन आयामों के रूप में पहचाना गया है। मध्यस्थ दर्शन सहस्तित्ववाद की मानवीय शिक्षा से मानसिक स्वतंत्रता के लिए मानने की अपेक्षा अस्तित्व सहज वास्तविकताओं को जानने से भ्रम मुक्ति, भावनात्मक स्वतंत्रता के लिए मूल्यों को समझकर, व्यवस्था में भागीदारी का अभ्यास व समस्त इकाइयों के बीच सह अस्तित्व के नियम को जानने की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए श्रमपूर्वक उत्पादन व विनिमय की शिक्षा से परिवार में समृद्धि के साथ जीने की व्यावहारिक शिक्षा का विद्यार्थियों को अध्ययन एवं अध्यास कराया गया। स्वयं में व्यवस्था को स्वतंत्रता, निर्णय लेने का अधार, अपने आदर्श की पहचान, अपनी उपयोगिता या महत्व की पहचान, मन को जानना, स्वयं का अध्ययन, कल्पनाशीलता का सदुपयोग, अपने विचार-व्यवहार-कार्य-अनुभव के रूप में आंकलित किया गया है। समग्र व्यवस्था में भागीदारी के आशय से सम्बन्ध को जानना, भाव / मूल्यों (सम्मान, विश्वास, कृतज्ञता) को समझाना, शोषण व प्रदुषण मुक्त प्राकृतिक नियम, समग्रता के साथ जीने के पांचो आयाम - शिक्षा, स्वास्थ, न्याय, उत्पादन, विनिमय के विषय वस्तु का अध्ययन, अभ्यास संस्थागत कार्यशाला के माध्यम से प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत किया। विद्यार्थियों की अभी तक की परम्परागत शिक्षा में आत्मनिर्भरता और पूरकता का अध्ययन/अभ्यास प्रतिक्षीत है प्रस्तुत शोध पत्र में मानवीय शिक्षा के प्रभाव को स्वयं में व्यवस्था से समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में आंकलित किया गया है जिससे प्रत्येक शिक्षित मानव अपने तन, मन व धन के सदुपयोग को जानकार जीने का प्रयास कर सके।
डॉ अभय वानखेड़े(2025); विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता और पूरकता की शिक्षा का प्रभाव – स्वयं में व्यवस्था से समग्र व्यवस्था में भागीदारी के सन्दर्भ में , Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 7., Pp. 22-28. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
- भारत सिंह, असवाल, (2017) मूल्य शिक्षा का जीवन में महत्व एवं आवश्यकता, श्रंखला एक शोधपरक वैचारिक पत्रिका VOL-4, ISSUE-10, June- 2017. पृ.- 117-121.
- दायमा, अजय (2022) शिक्षा क्या,क्यों और कैसे? शिक्षक, अभिभावक प्रशिक्षण नियमावली, मानव चेतना विकास केंद्र, इंदौर (म.प्र.) पृ.- 16-20.
- George Ime, N. & Uyanga Unwanaobong D. (2014) Youth and Moral Values in a Changing Society. IOSR Journal Of Humanities And Social Science (IOSR-JHSS) Volume 19, Issue 6, Ver. I, PP 40-44.
- जायसवाल, सिपु (2024) जीवन की अर्थपूर्णता, शब्द ब्रह्म, पीअर रीव्यूडरेफ्रीड रिसर्च जर्नल, भारतीय भाषाओं की अंतरराष्ट्रीय मासिक शोध पत्रिका, Vol 12, Issue 10, पृ.- 25-31.
- Minor Degree course (2022) on Universal Human Values (UHV)- AICTE, Vasant Kunj, New Delhi 2022.
- नागराज ए. (2001) आवर्तनशील अर्थशास्त्र। बुक, दिव्या पथ संस्थान, जीवन विद्या प्रकाशन, अमरकंटक, जिला – शहडोल (म.प्र.)
- नागराज ए. (2009) समाधानात्मक भौतिकवाद। बुक, दिव्या पथ संस्थान, जीवन विद्या प्रकाशन, अमरकंटक, जिला – शहडोल (म.प्र.)
![SHIKSHAN SANSHODHAN [ ISSN(O): 2581-6241 ] Peer-Reviewed, Referred, Indexed Research Journal.](https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/wp-content/uploads/SS-TITLE-HEADER.png)