भोजपुरी जनवादी उपन्यास ‘करेजा के काँट’ का समीक्षात्मक विवेचन
Author(s): राजेश कुमार
Authors Affiliations:
शोध छात्र, स्नातकोत्तर भोजपुरी विभाग
वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, बिहार
DOIs:10.2018/SS/202504013     |     Paper ID: SS202504013शोध सार :- डॉ. अरुण मोहन ‘भारवि’ एक सुलझे हुए लेखक और साहित्य-संस्कृति के एक सजग कार्यकर्ता भी हैं। इन्होंने सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर खूब जम कर कलम चलाया है। ‘करेजा के काँट’ कथाकार भारवि का राजनीतिक उपन्यास है और इसे भोजपुरी का प्रथम जनवादी उपन्यास कहा गया है। इसकी पृष्टभूमि नक्सलवाद है। इस उपन्यास में दीपक नामक एक नौजवान को केंद्र मे रख कर कहानी तैयार की गई है। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन की छाप इस पर है। लेखक ने इस आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और जेल यात्रा भी की। यह ऐसा काँट है जो करेजा में धँसा है, तिल-तिल कर कसक रहा है, निकालें पर निकलता नहीं बस रिसता रहता है। इसी टीस और व्याकुलता को इसमें लेखक ने व्यक्त किया है। उपन्यास की शुरुआत जाड़े की सुबह से होती है, जब दीपक नामक युवक सेठ के यहाँ डकैती डालते गिरफ्तार किया गया है, और थाने में उसकी जमकर पिटाई की गई है। यहीं से चर्चा का बाजार गर्म होता है, कुछ दीपक को डकैत कहते हैं, कुछ नक्सलाइट तो कोई उसे गरीबों का मसीहा मानता है।
राजेश कुमार(2025); भोजपुरी जनवादी उपन्यास ‘करेजा के काँट’ का समीक्षात्मक विवेचन, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 4., Pp.79-82. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
- डॉ. अरुण मोहन ‘भारवि’ (1985), करेजा के काँट, अरुणोदय प्रकाशन, बक्सर.
- डॉ. नीरज सिंह (2019), गधपूरना पत्रिका (नवम्बर), अरुणोदय प्रकाशन, बक्सर.
- डॉ. अर्जुन तिवारी (2021), गधपूरना पत्रिका (मार्च), अरुणोदय प्रकाशन, बक्सर.
- महेश्वराचार्य (2013), जब तोप मोकाबिल हो, अरुणोदय प्रकाशन, बक्सर.
- डॉ. त्रिलोकीनाथ पाण्डेय (2018), त्रिवेनी, अरुणोदय प्रकाशन, बक्सर.
![SHIKSHAN SANSHODHAN [ ISSN(O): 2581-6241 ] Peer-Reviewed, Referred, Indexed Research Journal.](https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/wp-content/uploads/SS-TITLE-HEADER.png)