9, August 2025

भारतीय कला के क्रमिक विकास : पंचाल क्षेत्र की स्थानीय मुद्राएँ

Author(s): रवि नंदन कुमार

Authors Affiliations:

शोधार्थी, स्नातकोत्तर प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग

मगध विश्वविद्यालय, बोधगया (बिहार), भारत

DOIs:10.2018/SS/202508004     |     Paper ID: SS202508004


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शोध प्रस्तुति के सारांश कलाओं में ललित कला के अध्ययन पुरातत्व के साथ-साथ उनके उत्खनन द्वारा प्राप्त कला सामग्रियों के संग्रह और प्रदर्शन भारतीय संस्कृति का एक मानक व्यवस्था है । इन्हीं कलाओं के विश्लेष्णात्मक अध्ययन हमारे देश कि तरक्की और विकास से पर्दा उठाती हैं । प्रस्तुत शोध पत्र में हम कला के वस्तुओं में मुद्रा कला (सिक्कों) के बारे में अध्ययन करेंगे कि मुद्राओं का प्रचलन में स्थानीय सम्बन्ध क्या था ? देश में सांस्कृतिक विकास के कारण, धर्म और विश्वास का विस्तारण कैसे हुआ ? मुद्रा कला (मुद्राशास्त्र) की अवधारणा तथा उनपर चित्रित आकृतियों का तात्पर्य के वास्तविक अभिप्राय को जानना अति आवश्यक है । स्थानीय मुद्राओं के आलोचनात्मक अध्ययन से हमें विभिन्न मुद्राओं के क्रमिक विकास के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकेंगे । विशेष कर इस शोध में पंचाल क्षेत्र की स्थानीय मुद्राओं का अवलोकन एवं उनके कलात्मक पृष्ठभूमि के साथ भारत के विभिन्न राजवंशों के धार्मिक विचारधाराओं का भी इतिहास जान पाएंगे ।

     
शब्द कुंजी : मुद्रा, कला, सिक्का, आहत, धातु, उत्त्किर्ण, पुरातत्व,  कुषाण काल 

रवि नंदन कुमार (2025); भारतीय कला के क्रमिक विकास : पंचाल क्षेत्र की स्थानीय मुद्राएँ, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences,      ISSN(o): 2581-6241,  Volume – 8,   Issue –  8.,  Pp. 20-24.        Available on –   https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/


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