प्रस्थानत्रयी में अक्षरब्रह्म के चार स्वरूप : विशिष्ट विवेचन
Author(s): डॉ. स्वामी ज्ञानानंददास
Authors Affiliations:
आर्ष शोध संस्थान, गांधीनगर
DOIs:10.2018/SS/202510007     |     Paper ID: SS202510007सार: सनातन हिन्दू धर्म के सर्वमान्य शास्त्रों; उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता तथा ब्रह्मसूत्र, को सामूहिक रूप से ‘प्रस्थानत्रयी’ कहा जाता है। ये तीनों ग्रंथ वेदांत दर्शन के आधारस्तंभ माने जाते हैं और समस्त आचार्यों द्वारा इनके सर्वोच्च अधिकार एवं प्रामाणिकता को स्वीकार किया गया है। इन ग्रंथों में वर्णित सिद्धांत केवल दार्शनिक विमर्श तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मानव जीवन के आध्यात्मिक, नैतिक एवं दार्शनिक आयामों को भी दिशा प्रदान करते हैं।
प्रस्तुत शोध-पत्र में प्रस्थानत्रयी में प्रतिपादित ‘अक्षरतत्त्व’ की अवधारणा का गहन अध्ययन एवं मूल्यांकन किया गया है। इस शोध में विशेष रूप से अक्षर के चार स्वरूपों; चिदाकाश, अक्षरधाम में परब्रह्म के सेवकस्वरूप, धामस्वरूप तथा पृथ्वी पर गुरुस्वरूप अक्षरब्रह्म, का विवेचन किया गया है। इन चारों स्वरूपों का विश्लेषण उपनिषदों के शाश्वत सिद्धांत, गीता के व्यावहारिक तत्त्वबोध तथा ब्रह्मसूत्र के तार्किक सूत्रों के माध्यम से किया गया है।
अध्ययन का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि अक्षरतत्त्व का स्वरूप केवल सैद्धांतिक न होकर अनुभवात्मक और तात्त्विक दोनों स्तरों पर एकत्व का संदेश देता है। इस विवेचन के माध्यम से न केवल वेदांत दर्शन की गूढ़ अवधारणाओं का प्रकाश पड़ता है, बल्कि यह भी प्रतिपादित होता है कि ‘अक्षर’ ही वह शाश्वत तत्त्व है जो जीव को ब्राह्मी स्थिति को धारण करवा के परब्रह्म की निर्विघ्न भक्ति की ओर अग्रसर करता है। इसके अतिरिक्त अक्षरब्रह्म तत्त्व जीव, ईश्वर, माया और परब्रह्म के पारस्परिक संबंधों को स्पष्ट करता है।
डॉ. स्वामी ज्ञानानंददास, (2025); प्रस्थानत्रयी में अक्षरब्रह्म के चार स्वरूप : विशिष्ट विवेचन, Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences, ISSN(o): 2581-6241, Volume – 8, Issue – 10, Pp.41-51. Available on – https://shikshansanshodhan.researchculturesociety.org/
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